जायसी

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"के ढेर सुग्घर बा, हम कि पद्मावती?, हिरामन से पूछत रानी नागमती, आ सुगा जबाब देता…"; पद्मावत के चित्र रुपी निरूपण, c. 1750

मलिक मुहम्मद जायसी (निधन लगभग 1542) एगो भारतीय कवी आ सूफी पीर रहलें। जायसी आपन रचना अवधी भाषा में कइलें आ इनके सभसे परसिद्ध रचना पद्मावत नाँव के महाकाव्य हवे। जायसी उपनाँव, उत्तर प्रदेश के जायस कस्बा के निवासी होखे के कारण पड़ल। इनका के हिंदी साहित्य — जेह में अवधी समेत, हिंदी पट्टी के कई भाषा-बोली सभ के ओह जमाना के रचना सामिल कइल जाला, के भक्ति काल के चार गो सभसे प्रमुख कबी लोग में गिनल जाला, बाकी तीन लोग सूरदास, कबीरतुलसीदास हवें।

बाद में जायसी आपन मूल अस्थान छोड़ के, वर्तमान अमेठिये जिला के एगो दूसरा जगह पर रहे लागल रहलें।

जिनगी

जायसी के जनम के बारे में परमान सहित जानकारी ना मिले ला कई चीजन के आधार प अनुमान लगावल जाला कब इनके पैदाइश भइल रहे। हिंदी साहित्य के इतिहास में रामचंदर शुकुल कबी के खुद लिखल वाक्य के हवाला देलें[nb १] आ एकरे आधार प बतावे लें कि इनके जनम 900 हिजरी में भइल अनुमानित कइल जा सके ला, इनके रचना "आखिरी कलाम" के रचना काल 936 हिजरी (1528 ई°) के आसपास बतावे लें।[१] एह तरीका से इनके जनम के तिथी 1500 ईसवी के कुछ आगे-पाछे मानल जाला।[२]

जायसी उपनाँव अनुसार इनके जनम वर्त्तमान अमेठी जिला, उत्तर प्रदेश के जायस में भइल मानल जाला। हालाँकि, कुछ लोग इहो माने ला कि इनके जनम इहाँ ना भइल रहे बलुक, पाहुन के रूप में नेवासा पर इहाँ रहें।[३]

रचना

जायसी भक्तिकाल क पहिला कवी बाड़ैं जे कि अपना के कवी मानल जाए खातिर लिखले बाड़ैं। जायसी क रूप रंग भलै नीक ना रहै बाकी उनकर रचना उनके जस के जोग रहै। अवधी भाषा क महाकाव्य पदमावत के सुरुए में कहले बाड़ैं कि मुहमद कवि जो प्रेम का ना तन रकत न मांसु। जेइँ मुख देखा तेइँ हँसा सुना तो आए आँसु॥1|23॥[४] उनकरे 21 के रचना क उल्लेख मिलै ला जेहमें पदमावच, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा वगैरह परमुख बा। हालांकि उनकरे परसिध भइले क आधार पदमावतै के मानल जाला।[५] एहमें पदमिनी के परेम-कथा क रोचक वर्णन भयल ह।[६] एही महाकाव्य में रतनसेन क पहली पतनी नागमती के वियोग क अनूठा वर्णन हव।[७] इनकर भाषा अवधी हव आऊर इनकरे रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियन क दोहा चौपाई पद्धति क प्रभाव पड़ल रहल।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मध्यकालीन कवियों की गिनती में जायसी को एक प्रमुख कवि के रूप में स्थान दिया है। शिवकुमार मिश्र के अनुसार शुक्ल जी की दृष्टि जब जायसी की कवि प्रतिभा की ओर गई और उन्होंने जायसी ग्रंथावली का संपादन करते हुए उन्हें प्रथम श्रेणी के कवि के रूप में पहचाना, उसके पहले जायसी को इस रूप में नहीं देखा और सराहा गया था।[८] इसके अनुसार यह स्वाभाविक ही लगता है कि जायसी की काव्य प्रतिभा इन्हें मध्यकाल के दिग्गज कवि गोस्वामी तुलसीदास के स्तर कि लगती है। इसी कारण से उन्हें तुलसी के समक्ष जायसी से बड़ा कवि नहीं दिखा। शुक्ल जी के अनुसार जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा परिमित है, पर प्रेमवेदना अत्यंत गूढ़ है।[९][१०]

टिप्पणी

  1. "भा अवतार मोर नौ सदी"

संदर्भ

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  1. टेम्पलेट:Cite book
  2. टेम्पलेट:Cite book
  3. टेम्पलेट:Cite book
  4. टेम्पलेट:Cite book
  5. टेम्पलेट:Cite web
  6. टेम्पलेट:Cite web
  7. टेम्पलेट:Cite web
  8. शिवकुमार मिश्र, भक्तिआन्दोलन और भक्ति काव्य, पृ.86
  9. भूमिका, त्रिवेणी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, सं.कृष्णानद, पृ.9
  10. टेम्पलेट:Cite web