संसाधन भूगोल

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संसाधन भूगोल (अंगरेजी: Resource geography) आम ब्यापक बिभाजन अनुसार मानव भूगोल के, आ बिसेस रूप से सटीक आ सकेत बिभाजन अनुसार आर्थिक भूगोल के, एगो शाखा हउवे। भूगोल के ई शाखा मुख्य रूप से संसाधन सभ के पृथ्वी पर अलग-अलग जगह बितरण पर धियान केन्द्रित करे ला। संसाधन के कमी, संसाधन के पर्याप्तता (भरपूर मौजूदगी), गुणवत्ता (इस्तेमाल खाती आ उत्पादन में महत्व अनुसार) आ मनुष्य के सस्टेनेबल बिकास एकर मुख्य फोकस बाटे। एकरे अलावा ई, संसाधन सभ के उपलब्धता वाला इलाका आ डिमांड वाला इलाका के बीच बिसमता के भी अध्ययन करे ला।[१]

संसाधन भूगोल के मुख्य सवाल ई बा की पृथ्वी पर सीमित मात्रा में पावल जाए वाला संसाधन सभ कइसे मनुष्य के असीमित मांग के पूरा क सके लें। एह शाखा के बिचारधारा में उपयोगिता वादी, प्राग्मैटिक आ प्रबंधनकारी, तीनों तरह के बिचार रहल बा।

बिसयबस्तु

भूगोल अपना सुरुआती काल से धरती प बिबिध चीज सभ के बितरण के अध्ययन करे वाला बिसय बा; साथे-साथे साथ ई मनुष्य के बिबिध क्रियाकलाप आ मनुष्य के पर्यावरण के बीचा में संबंध के भी स्थान (जगह) के बिसेस महत्व के धियान में रख के अध्ययन करे वाला बिसय हवे। मनुष्य के क्रियाकलाप सभ के स्थानिक (स्पेशियल) अध्ययन भूगोल के बिसाल शाखा मानव भूगोल के अंतर्गत कइल जाला। मानव भूगोल के उपशाखा बा आर्थिक भूगोल जे मनुष्य के बिबिध आर्थिक कामकाज सभ के भूगोलीय अध्ययन आ बिस्लेषण करे ला।

मूल रूप से प्राकृतिक संसाधन सभ के भूगोल के अध्ययन में — संसाधन सभ के धरातल प बितरन, इनहन के ख़ास तरीका से (असमान) बितरण के कारण आ पैटर्न के अध्ययन, बितरण में जगह अनुसार बिबिधता आ असमानता के कारण पड़े वाला आर्थिक परभाव इत्यादि के अध्ययन कइल जाला।

समय के साथ एह शाखा के फोकस भी बदलत रहल बा। एगो बिद्वान के कहनाम बा कि अगर बीसवीं सदी के शुरूआती दौर में ई प्राकृतिक संसाधन के अर्थशास्त्र के भूगोल के जिकिर भइल रहित तब एकर अरथ बूझल जाइत कि "कौनों देस के खेती, जंगल, खनिज, जल आ अउरी प्राकृतिक संसाधन सभ के लोकेशन के मतलब, जनसंख्या के केंद्र आ आर्थिक कामकाज के केंद्र सभ संबंधित" हालाँकि उनके अनुसार ई नया समय में बदल रहल बा आ "अब बेहवारिक भूगोल आ बेहवारिक अर्थशास्त्र, जे दुनों एक दुसरे के करीब आ रहल बाड़ें, के बीच अंतर्संबंध सभ के रूप में बिकसित हो रहल बा"[२]

भारत में

भारत में संसाधन भूगोल के शुरुआती काम जमीन के इस्तेमाल संबंधी अध्ययन से भइल, जेकरा लैंड-यूज मैपिंग आ लैंड-यूटीलाइजेशन से जुड़ल मानल जा सके ला। इहाँ एस. पी. चटर्जी द्वारा सभसे पहिले एह क्षेत्र में 1941 में धियान दियावल गइल। इनहीं के द्वारा 1956 में नेशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गेनाइजेशन के अस्थापना कलकत्ता में भइल। इनके अलावा प्रकाशराव, सेन आ मोहम्मद शफी के काम एह क्षेत्र में मुख्य रूप से गिनावल जा सके ला।[३]


इहो देखल जाय

संदर्भ

टेम्पलेट:Reflist

टेम्पलेट:Human geography

टेम्पलेट:भूगोल-आधार