भोजपुरी लोकगीत

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टेम्पलेट:For2 भोजपुरी लोकगीत भारतनेपाल के भोजपुरी क्षेत्र में, आ कुछ अउरी देसन में जहाँ भोजपुरी भाषा बोले वाला लोग बसल बा, परंपरागत रूप से गावल जाए वाला लोकगीत हवें। भारत में भोजपुरी इलाका के बिस्तार पूरबी उत्तर परदेस, पच्छिमी बिहार, झारखंडछत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सा में बा आ नेपाल के तराई वाला इलाका के कुछ हिस्सा भोजपुरी भाषी क्षेत्र में आवे लें, जहाँ ई लोकगीत चलनसार बाने। अन्य जगहन में सूरीनाम, फिजी, मॉरिशस इत्यादि देशन में जहाँ भोजपुरी भाषी लोग बाटे एकर प्रचलन बाटे।[१][२]

आमतौर पर एहू के दू गो बिभेद में बाँटल जा सकेला। एक हिस्सा ओह गीतन के बा जवन परंपरा में पुराना जमाना से चलि आ रहल बाड़ें। इन्हन के रचना के कइल ई किछु अता-पता नइखे। सैकड़न साल में ई गीत बनल बाड़ें।[२] कजरी, सोहर, झूमर इत्यादि परंपरागत गीत एही श्रेणी में आई। दूसरा ओर महेंदर मिसिर के अलावा पछिला कुछ समय में प्रोफेशनल लोग के द्वारा लोकगीत के एगो बिधा के रूप में बिकसित करि के गावे के परंपरा शुरू भइल। भिखारी ठाकुर[३] के बिदेसिया से ले के वर्तमान समय के ढेर सारा गायक लोग के गीत के लोकगीत के बिधा में कहल जाला।

भोजपुरी लोकगीतन के एकट्ठा करे के दिसा में कई लोग काम कइल। परसिद्ध भाषा बिग्यानी आ भारत के भाषाई सर्वे करे वाला जार्ज ग्रियर्सन कुछ भोजपुरी लोकगीत सभ के एकट्ठा क के उनहन के अंगरेजी में अनुवाद 1886 में रॉयल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में छपववलें।[४] देवेंद्र सत्यार्थी कुछ अहिरऊ गीत "बिरहा" सभ के संकलन करिके छापा में छपववलें।[५] भोजपुरी लोकगीतन के साहित्यिक दृष्टि से अध्ययन कई गो लोग कइले बाटे जेवना में कृष्णदेव उपाध्याय के काम बहुत महत्व वाला बाटे।[६] एकरे अलावा श्रीधर मिश्र[७] आ विद्यानिवास मिश्र के लिखल चीज[८] भी खास महत्व के बा।

प्रकार

भोजपुरी लोकगीतन के कृष्ण देव उपधिया चार गो प्रकार में बँटले बाने।[९] (1) संस्कार आ रीति-रेवाज से जुडल, (2) बरत-तिहुआर से संबंधित, (3) मौसम आ सीजन के अनुसार गावल जाए वाला, (4) कौनों जाति-समुदाय के गीत, आ (5) दैनिक जीवन के बिबिध कामकाज आ पेशा से जुड़ल गीत।

संस्कार-रिवाज

  • सोहर: लइका भइला पर भा लइका के जनम से संबंधित मोका पर - जइसे कि छट्ठी, बरही, जनम दिन, रामनउमी, जन्माष्टमी - पर गावल जाये वाला गीत।
  • बियाह के गीति: बियाह संस्कार के समय गावल जाये वाला गीत सभ।
  • निर्गुन: निर्गुन बैराग के भावना आ संसार के मोह छोड़ के सत्य के लखे वाला गीत हवे। आमतौर पर मौअत के समय गावल जाला। पंडित कुमार गंधर्व एकरा के शास्त्रीय गायन के बिधा के रूप में अस्थापित कइलें। भोजपुरी लोकगीत में भरत शर्मा के नब्बे के दशक में सभसे ढेर परसिद्धी एही निर्गुन के गावे से भइल।

तिहुआर-ब्रत

  • पिंड़िया: विशेष रूप से कुवांरी कन्याओं द्वारा मनावल जाला। जेवना अवसर पर भांति भांति के पिंड़िया के गीत गावल जाला।
  • छठ पूजा: छठ भोजपुरिया समाज में मनावल जावे वाला एगो प्रमुख त्यौहार ह। इ अवसर पर बहुत सारा पारंपरिक एवं आधुनिक गीत गवाल जाला, जेवना में एगो पारंपरिक गीत " कांच ही बांस के बंहगिया, बहंगी लचकत जाय" बहुत प्रसिद्ध बा।
  • शीतला पूजा:चैत नवरात्र में मनावे जावे वाला ई त्यौहार में देवीगीत के एकदम भरमार ह। जेमे "निमिया के डढ़ीया मईया लावेली झूलनवा" जैसे पारंपरिक गीत सदियों से गावल जाता।

समुदाय

  • अहिरऊ भा बिरहा: अहिर लोग के गीत हवे। बिरहा शब्द के उत्पत्ती कुछ लोग "बिरह" शब्द से मानेला, हालाँकि एह गीत सभ में खाई बिरह के भावना के बर्णन ना मिले ला। बाद के समय में त बिरहा के नाँव पर फिलिमी गाना सभ के तर्ज ले के ओह पर कहानी सुनावे के बिधा के भी बिरहा कहल गइल आ एह तरह के नवका बिरहा के कैसेट अस्सी-नब्बे के दशक में ख़ूब चलन में रहे।
  • गोंडऊ: गोंड जनजाति के द्वारा शादी बियाह औरि अन्य अवसर पर गावे जाए वाला गीत।
  • धोबी गीत: धोबी जाति के द्वारा शादी बियाह औरि अन्य अवसर पर गावे जाए वाला गीत।

मौसमी

  • होरी/फगुआ: फागुन के महीना में होली के समय गावल जाये वाला गीत के होरी भा फगुआ कहल जाला।
  • चइता/चइती: चइत के महीना में गावल जाये वाला गीत।
  • कजरी: सावन की महीना में गावल जाये वाला लोकगीत हउवे। कजरी झुलुआ खेलत समय गावल जाले। छोट बंद के ई गीत तेज आ चंचल लय के होलें। कजरी के दू गो रूप बतावल जाला, मिर्जापुरी कजरी आ बनारसी कजरी जवन उपशास्त्रीय गायन की रूप में गावल जाला। कजरी की गीतन के मुख्य बिसय राधा-कृष्ण के प्रेम, रामायण के प्रसंग आ ननद-भउजाई के संवाद हवें।

कामकाज

  • जँतसार: जाँता पीसत घरी मेहरारुन द्वारा गावल जाये वाला गीत।
  • रोपनी- कटनी: धान के रोपनी कटनी करत समय औरतन के द्वारा गावल जाये वाला गीत।
  • कहरवा: दूल्हा दुल्हन के डोली ढोवत घरी कहारन के द्वारा गावल जाये वाला गीत।

अन्य बिबिध

  • झूमर: छोट पद वाला गीत जौना के लय चंचल आ ताल के चाल तेज होला।
  • पुरबी: एगो खास धुन वाला गीत हवें। एक समय में महेन्दर मिसिर के लिखल पुरबी पुरा भोजपुरी इलाका में बहुत चलन में रहे। परसिद्ध गीत - "अँगुरी में डंसले बिया नगिनिया हो..." एगो पुरबी गीत हवे। एकर लय धीरे होले बाकी ताल के ठेका द्रुत गति से चलेला।

गायक गायिका लोग

भोजपुरी लोकगीत, गायकी के बिधा के रूप में भी चलन में बा आ बिबिध किसिम के परंपरागत पुराना लोकगीत सभ के भी एह बिधा में गिनल जाला आ बाद के कई गीतकार आ गायक लोग भोजपुरी भाषा में बिबिध किसिम के रचना सभ के भी एह बिधा के तहत गवले बाने। भोजपुरी लोकगीत के कुछ प्रमुख गायक लोग में शारदा सिन्हा, भरत शर्मा, मनोज तिवारी, कल्पना पटवारी, चंदन तिवारी, पवन सिंह, दामोदर राव नियर लोग बा।

संदर्भ

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अउरी पढ़ल जाय

बाहरी कड़ी

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